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ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧਿ ਅਹੰਕਾਰਿ ਫਿਰਹਿ ਦੇਵਾਨਿਆ ॥
वह काम, क्रोध एवं अहंकार में मग्न होकर पागलों की तरह घूम रहा है।
ਸਿਰਿ ਲਗਾ ਜਮ ਡੰਡੁ ਤਾ ਪਛੁਤਾਨਿਆ ॥
लेकिन जब मृत्यु की चोट इसके सिर पर आकर लगी तो वह पश्चाताप कर रहा है।
ਬਿਨੁ ਪੂਰੇ ਗੁਰਦੇਵ ਫਿਰੈ ਸੈਤਾਨਿਆ ॥੯॥
पूर्ण गुरुदेव के बिना जीव एक शैतान की भांति घूमता रहता है॥ ६ ॥
ਸਲੋਕ ॥
श्लोक॥
ਰਾਜ ਕਪਟੰ ਰੂਪ ਕਪਟੰ ਧਨ ਕਪਟੰ ਕੁਲ ਗਰਬਤਹ ॥
मानव जीव अपने जीवन में जिस राज्य, सौन्दर्य, धन-दौलत एवं उच्च कुल का घमण्ड करता रहता है, वास्तव में यें सभी प्रपंच मात्र छल-कपट ही हैं।
ਸੰਚੰਤਿ ਬਿਖਿਆ ਛਲੰ ਛਿਦ੍ਰੰ ਨਾਨਕ ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਸੰਗਿ ਨ ਚਾਲਤੇ ॥੧॥
वह बड़े छल-कपट एवं दोषों द्वारा विष रूपी धन संचित करता है। परन्तु हे नानक ! सत्य तो यही है कि परमात्मा के नाम-धन के अतिरिक्त कुछ भी उसके साथ नहीं जाता॥ १॥
ਪੇਖੰਦੜੋ ਕੀ ਭੁਲੁ ਤੁੰਮਾ ਦਿਸਮੁ ਸੋਹਣਾ ॥
तुंमा देखने में बड़ा सुन्दर लगता है लेकिन मानव जीव इसे देखकर भूल में फंस जाता है।
ਅਢੁ ਨ ਲਹੰਦੜੋ ਮੁਲੁ ਨਾਨਕ ਸਾਥਿ ਨ ਜੁਲਈ ਮਾਇਆ ॥੨॥
इस तुम्बे का एक कौड़ी मात्र भी मूल्य प्राप्त नहीं होता। हे नानक ! धन-दौलत जीव के साथ नहीं जाते ॥ २ ॥
ਪਉੜੀ ॥
पौड़ी ॥
ਚਲਦਿਆ ਨਾਲਿ ਨ ਚਲੈ ਸੋ ਕਿਉ ਸੰਜੀਐ ॥
गुरु साहिब का आदेश है कि उस धन को हम क्यों संचित करें ? जो संसार से जाते समय हमारे साथ ही नहीं जाता।
ਤਿਸ ਕਾ ਕਹੁ ਕਿਆ ਜਤਨੁ ਜਿਸ ਤੇ ਵੰਜੀਐ ॥
जिस धन को हमने इस दुनिया में ही छोड़कर चल देना है, बताओ, उसे प्राप्त करने के लिए हम क्यों प्रयास करें ?
ਹਰਿ ਬਿਸਰਿਐ ਕਿਉ ਤ੍ਰਿਪਤਾਵੈ ਨਾ ਮਨੁ ਰੰਜੀਐ ॥
भगवान् को भुलाकर मन कैसे तृप्त हो सकता है? यह मन भी प्रसन्न नहीं हो सकता।
ਪ੍ਰਭੂ ਛੋਡਿ ਅਨ ਲਾਗੈ ਨਰਕਿ ਸਮੰਜੀਐ ॥
जो जीव प्रभु को छोड़कर सांसारिक प्रपंचों में लीन रहता है, अंततः वह नरक में ही बसेरा करता है।
ਹੋਹੁ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਦਇਆਲ ਨਾਨਕ ਭਉ ਭੰਜੀਐ ॥੧੦॥
नानक प्रार्थना करते हैं कि हे दया के घर, परमेश्वर ! कृपालु होकर हमारा भय नष्ट कर दो ॥ १०॥
ਸਲੋਕ ॥
श्लोक॥
ਨਚ ਰਾਜ ਸੁਖ ਮਿਸਟੰ ਨਚ ਭੋਗ ਰਸ ਮਿਸਟੰ ਨਚ ਮਿਸਟੰ ਸੁਖ ਮਾਇਆ ॥
गुरु साहिब का आदेश है कि न ही राज्य इत्यादि के सुख-वैभव मीठे हैं, न ही भोगने वाले रस मीठे हैं और न ही धन-दौलत के सुख मीठे हैं।
ਮਿਸਟੰ ਸਾਧਸੰਗਿ ਹਰਿ ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਮਿਸਟੰ ਪ੍ਰਭ ਦਰਸਨੰ ॥੧॥
हे नानक ! भगवान् के संतों महापुरुषों की पवित्र संगति ही मीठी है और भक्तजनों को प्रभु के दर्शन ही मीठे लगते हैं।॥ १॥
ਲਗੜਾ ਸੋ ਨੇਹੁ ਮੰਨ ਮਝਾਹੂ ਰਤਿਆ ॥
मुझे तो ऐसी मोहब्बत हो गई है, जिसके भीतर ही मेरा मन मग्न हो गया है।
ਵਿਧੜੋ ਸਚ ਥੋਕਿ ਨਾਨਕ ਮਿਠੜਾ ਸੋ ਧਣੀ ॥੨॥
हे नानक ! मेरा यह मन भगवान् के सत्य नाम रूपी धन के साथ लग गया है और वह प्रभु ही मुझे मीठा लगता है॥ २ ॥
ਪਉੜੀ ॥
पौड़ी॥
ਹਰਿ ਬਿਨੁ ਕਛੂ ਨ ਲਾਗਈ ਭਗਤਨ ਕਉ ਮੀਠਾ ॥
भक्तजनों को भगवान् (की भक्ति) के अतिरिक्त कुछ भी मीठा नहीं लगता।
ਆਨ ਸੁਆਦ ਸਭਿ ਫੀਕਿਆ ਕਰਿ ਨਿਰਨਉ ਡੀਠਾ ॥
मैंने भली भांति यह निर्णय करके देख लिया है कि नाम के अतिरिक्त जीवन के अन्य सभी स्वाद फीके हैं।
ਅਗਿਆਨੁ ਭਰਮੁ ਦੁਖੁ ਕਟਿਆ ਗੁਰ ਭਏ ਬਸੀਠਾ ॥
जब गुरु मेरा मध्यस्थ बन गया तो अज्ञान, भ्रम एवं दुःख कट गया।
ਚਰਨ ਕਮਲ ਮਨੁ ਬੇਧਿਆ ਜਿਉ ਰੰਗੁ ਮਜੀਠਾ ॥
मेरा मन भगवान् के चरण-कमलों से ऐसे बिंध गया है, जैसे मजीठ से कपड़े को पक्का रंग चढ़ जाता है।
ਜੀਉ ਪ੍ਰਾਣ ਤਨੁ ਮਨੁ ਪ੍ਰਭੂ ਬਿਨਸੇ ਸਭਿ ਝੂਠਾ ॥੧੧॥
मेरी यह आत्मा, प्राण, तन एवं मन सब प्रभु के ही हैं और अन्य सभी झूठे मोह नष्ट हो गए हैं।॥ ११॥
ਸਲੋਕ ॥
श्लोक ॥
ਤਿਅਕਤ ਜਲੰ ਨਹ ਜੀਵ ਮੀਨੰ ਨਹ ਤਿਆਗਿ ਚਾਤ੍ਰਿਕ ਮੇਘ ਮੰਡਲਹ ॥
जैसे जल को त्याग कर मछली जीवित नहीं रहती, जैसे एक पपीहा भी मेघ मण्डल को त्याग कर जीवित नहीं रहता,
ਬਾਣ ਬੇਧੰਚ ਕੁਰੰਕ ਨਾਦੰ ਅਲਿ ਬੰਧਨ ਕੁਸਮ ਬਾਸਨਹ ॥
जैसे एक मृग सुन्दर नाद को श्रवण करके मुग्ध हो जाता है, जैसे भंवरा फूलों की सुगन्धि के बन्धन में फंस जाता है।
ਚਰਨ ਕਮਲ ਰਚੰਤਿ ਸੰਤਹ ਨਾਨਕ ਆਨ ਨ ਰੁਚਤੇ ॥੧॥
हे नानक ! वैसे ही सन्त-महात्मा प्रभु के चरण-कमलों में मग्न रहते हैं और उसके अतिरिक्त उनकी किसी अन्य में कोई रुचि नहीं होती ॥ १॥
ਮੁਖੁ ਡੇਖਾਊ ਪਲਕ ਛਡਿ ਆਨ ਨ ਡੇਊ ਚਿਤੁ ॥
हे प्रभु ! यदि एक क्षण भर के लिए भी आपके मुख के मुझे दर्शन हो जाएँ तो आपको छोड़कर मैं अपना चित्त किसी दूसरे में नहीं लगाऊँगा।
ਜੀਵਣ ਸੰਗਮੁ ਤਿਸੁ ਧਣੀ ਹਰਿ ਨਾਨਕ ਸੰਤਾਂ ਮਿਤੁ ॥੨॥
हे नानक ! वास्तविक जीवन तो उस मालिक-परमेश्वर के संगम में ही है, जो संतो-महापुरुषों का घनिष्ठ मित्र है॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥
पौड़ी ॥
ਜਿਉ ਮਛੁਲੀ ਬਿਨੁ ਪਾਣੀਐ ਕਿਉ ਜੀਵਣੁ ਪਾਵੈ ॥
जिस तरह मछली जल के बिना जीवन प्राप्त नहीं कर पाती,
ਬੂੰਦ ਵਿਹੂਣਾ ਚਾਤ੍ਰਿਕੋ ਕਿਉ ਕਰਿ ਤ੍ਰਿਪਤਾਵੈ ॥
जिस तरह एक पपीहा स्वाति बूंद के बिना कैसे तृप्त रह सकता है,
ਨਾਦ ਕੁਰੰਕਹਿ ਬੇਧਿਆ ਸਨਮੁਖ ਉਠਿ ਧਾਵੈ ॥
जैसे एक मृग नाद को सुनकर आकर्षित होकर नाद की तरफ उठ दौड़ता है,
ਭਵਰੁ ਲੋਭੀ ਕੁਸਮ ਬਾਸੁ ਕਾ ਮਿਲਿ ਆਪੁ ਬੰਧਾਵੈ ॥
भंवरा पुष्पों की महक का लोभी है और पुष्प में ही फँस जाता है,
ਤਿਉ ਸੰਤ ਜਨਾ ਹਰਿ ਪ੍ਰੀਤਿ ਹੈ ਦੇਖਿ ਦਰਸੁ ਅਘਾਵੈ ॥੧੨॥
वैसे ही संत-महापुरुषों की भगवान् के साथ अटूट प्रीति है और उसके दर्शन प्राप्त करके वे आनंदित हो जाते हैं।॥ १२ ॥
ਸਲੋਕ ॥
श्लोक ॥
ਚਿਤਵੰਤਿ ਚਰਨ ਕਮਲੰ ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਅਰਾਧਨਹ ॥
संतजन केवल भगवान् के चरणों को ही स्मरण करते रहते हैं और सांस-सांस से उसकी आराधना में ही मग्न रहते हैं।
ਨਹ ਬਿਸਰੰਤਿ ਨਾਮ ਅਚੁਤ ਨਾਨਕ ਆਸ ਪੂਰਨ ਪਰਮੇਸੁਰਹ ॥੧॥
हे नानक ! उन्हें अच्युत नाम विस्मृत नहीं होता और परमेश्वर उनकी प्रत्येक आशा पूरी करते हैं॥ १॥
ਸੀਤੜਾ ਮੰਨ ਮੰਝਾਹਿ ਪਲਕ ਨ ਥੀਵੈ ਬਾਹਰਾ ॥
जिन श्रद्धालुओं के हृदय में भगवान् का नाम विराजमान है तथा पल भर के लिए भी नाम उन से दूर नहीं होता।
ਨਾਨਕ ਆਸੜੀ ਨਿਬਾਹਿ ਸਦਾ ਪੇਖੰਦੋ ਸਚੁ ਧਣੀ ॥੨॥
हे नानक ! सत्य प्रभु उनकी समस्त मनोकामनाएँ पूरी करते हैं और हमेशा ही उनकी देखरेख करते हैं॥ २ ॥
ਪਉੜੀ ॥
पौड़ी ॥
ਆਸਾਵੰਤੀ ਆਸ ਗੁਸਾਈ ਪੂਰੀਐ ॥
हे जगत के मालिक ! मुझ आशावान की आशा पूरी कीजिए।
ਮਿਲਿ ਗੋਪਾਲ ਗੋਬਿੰਦ ਨ ਕਬਹੂ ਝੂਰੀਐ ॥
हे गोपाल, हे गोविन्द ! यदि आप मुझे मिल जाओ तो मुझे कभी भी खेद एवं पश्चाताप नहीं होगा।
ਦੇਹੁ ਦਰਸੁ ਮਨਿ ਚਾਉ ਲਹਿ ਜਾਹਿ ਵਿਸੂਰੀਐ ॥
मेरे मन में बड़ी इच्छा है, मुझे अपने दर्शन दो, ताकि मेरे सभी दुःख मिट जाएँ।