Guru Granth Sahib Translation Project

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Page 50

ਸਤਿਗੁਰੁ ਗਹਿਰ ਗਭੀਰੁ ਹੈ ਸੁਖ ਸਾਗਰੁ ਅਘਖੰਡੁ ॥ सतगुरु गहन, गंभीर एवं सुखों का सागर है और समस्त पापों का नाश करने वाले हैं।
ਜਿਨਿ ਗੁਰੁ ਸੇਵਿਆ ਆਪਣਾ ਜਮਦੂਤ ਨ ਲਾਗੈ ਡੰਡੁ ॥ जिस प्राणी ने अपने गुरु की सेवा का फल प्राप्त किया है, उसे यमदूतों का कदापि दंड नहीं मिलता अपितु वह मोक्ष प्राप्त कर लेता है।
ਗੁਰ ਨਾਲਿ ਤੁਲਿ ਨ ਲਗਈ ਖੋਜਿ ਡਿਠਾ ਬ੍ਰਹਮੰਡੁ ॥ गुरु के बराबर कोई भी समर्थ नहीं, क्योंकि मैंने यह सारा ब्रह्माण्ड खोजकर देख लिया है।
ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਸਤਿਗੁਰਿ ਦੀਆ ਸੁਖੁ ਨਾਨਕ ਮਨ ਮਹਿ ਮੰਡੁ ॥੪॥੨੦॥੯੦॥ सतगुरु ने नाम का खजाना प्रदान कर दिया है और उस द्वारा नानक ने अपने चित्त के भीतर सुख धारण कर लिया है ॥४॥२०॥६०॥
ਸਿਰੀਰਾਗੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥ श्रीरागु महला ५ ॥
ਮਿਠਾ ਕਰਿ ਕੈ ਖਾਇਆ ਕਉੜਾ ਉਪਜਿਆ ਸਾਦੁ ॥ प्राणी सांसारिक रसों को बड़ा मीठा समझकर भोगता है परन्तु उनका स्वाद बड़ा कटु निकलता है।
ਭਾਈ ਮੀਤ ਸੁਰਿਦ ਕੀਏ ਬਿਖਿਆ ਰਚਿਆ ਬਾਦੁ ॥ भाई, मित्र से सुहृद करके व्यर्थ का विवाद उत्पन्न कर लिया है और तुम व्यर्थ ही पापों में ग्रस्त हो गए हो।
ਜਾਂਦੇ ਬਿਲਮ ਨ ਹੋਵਈ ਵਿਣੁ ਨਾਵੈ ਬਿਸਮਾਦੁ ॥੧॥ अलोप होते इनको विलम्ब नहीं होता, नाम के अतिरिक्त सब नश्वर है, व्यक्ति दु:ख में चूर-चूर हो जाता है॥१॥
ਮੇਰੇ ਮਨ ਸਤਗੁਰ ਕੀ ਸੇਵਾ ਲਾਗੁ ॥ हे मेरे मन ! सतगुरु की सेवा में लीन हो जाओ।
ਜੋ ਦੀਸੈ ਸੋ ਵਿਣਸਣਾ ਮਨ ਕੀ ਮਤਿ ਤਿਆਗੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ दुनिया में जो कुछ दिखाई देता है, वह समस्त नश्वर हो जाएगा। हे प्राणी ! तू मन की चतुरता को त्याग दे॥१॥ रहाउ ॥
ਜਿਉ ਕੂਕਰੁ ਹਰਕਾਇਆ ਧਾਵੈ ਦਹ ਦਿਸ ਜਾਇ ॥ यह मन इतना दुःशील या दुराचारी है कि पागल कुत्ते की भाँति दसों-दिशाओं में भागता तथा भटकता फिरता है।
ਲੋਭੀ ਜੰਤੁ ਨ ਜਾਣਈ ਭਖੁ ਅਭਖੁ ਸਭ ਖਾਇ ॥ इसी तरह लालची प्राणी कुछ भी ध्यान नहीं करता। लोभी पशु की तरह खाद्य तथा अखाद्य सबको ग्रहण कर लेता है।
ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧ ਮਦਿ ਬਿਆਪਿਆ ਫਿਰਿ ਫਿਰਿ ਜੋਨੀ ਪਾਇ ॥੨॥ प्राणी काम, क्रोध तथा अहंकार के नशे में लीन होकर बार-बार योनियों में पड़ता है ॥२॥
ਮਾਇਆ ਜਾਲੁ ਪਸਾਰਿਆ ਭੀਤਰਿ ਚੋਗ ਬਣਾਇ ॥ माया ने अपना जाल (फांसने का) बिछा रखा है और इस जाल में तृष्णा रूपी दाना भी रख दिया है।
ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਪੰਖੀ ਫਾਸਿਆ ਨਿਕਸੁ ਨ ਪਾਏ ਮਾਇ ॥ हे मेरी माता ! लालची पक्षी (प्राणी) इसके भीतर वहाँ फँस जाता है और निकल नहीं पाता।
ਜਿਨਿ ਕੀਤਾ ਤਿਸਹਿ ਨ ਜਾਣਈ ਫਿਰਿ ਫਿਰਿ ਆਵੈ ਜਾਇ ॥੩॥ मनुष्य उसको नहीं पहचानता जिस सृष्टिकर्ता ने इसकी रचना की है और पुनःपुनः आवागमन में भटकता फिरता है॥ ३॥
ਅਨਿਕ ਪ੍ਰਕਾਰੀ ਮੋਹਿਆ ਬਹੁ ਬਿਧਿ ਇਹੁ ਸੰਸਾਰੁ ॥ माया ने इस विश्व को विभिन्न विधियों एवं अनेको ढंगों से मोह कर रखा हुआ है।
ਜਿਸ ਨੋ ਰਖੈ ਸੋ ਰਹੈ ਸੰਮ੍ਰਿਥੁ ਪੁਰਖੁ ਅਪਾਰੁ ॥ जिसकी अपार एवं समर्थ अकालपुरुष रक्षा करता है, वह भवसागर से पार हो जाता है।
ਹਰਿ ਜਨ ਹਰਿ ਲਿਵ ਉਧਰੇ ਨਾਨਕ ਸਦ ਬਲਿਹਾਰੁ ॥੪॥੨੧॥੯੧॥ हे नानक ! प्रभु भक्तों पर मैं सदैव न्यौछावर हूँ, जो भगवान् में सुरति लगाने के कारण भवसागर से पार हो गए हैं ॥४॥२१॥९१॥
ਸਿਰੀਰਾਗੁ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੨ ॥ श्रीरागु महला ५ घरु २ ॥
ਗੋਇਲਿ ਆਇਆ ਗੋਇਲੀ ਕਿਆ ਤਿਸੁ ਡੰਫੁ ਪਸਾਰੁ ॥ ग्वाला अपनी गायें लेकर थोड़ी देर के लिए चरागाह में आता है। उसका वहाँ आडम्बर करने का क्या अभिप्राय है?
ਮੁਹਲਤਿ ਪੁੰਨੀ ਚਲਣਾ ਤੂੰ ਸੰਮਲੁ ਘਰ ਬਾਰੁ ॥੧॥ हे प्राणी ! जब तेरा इस दुनिया में आने का समय खत्म समाप्त हो जाएगा, तब तूने यहाँ से चले जाना है। इसलिए अपने वास्तविक घर प्रभु-चरणों को याद रख॥१॥
ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਉ ਮਨਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਿ ਪਿਆਰਿ ॥ हे मेरे मन ! भगवान् का गुणगान करो तथा प्रेम से सतगुरु की सेवा का फल प्राप्त करो।
ਕਿਆ ਥੋੜੜੀ ਬਾਤ ਗੁਮਾਨੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ तुम थोड़े समय के लिए मिले इस जीवन का अहंकार क्यों करते हो?॥१॥ रहाउ॥
ਜੈਸੇ ਰੈਣਿ ਪਰਾਹੁਣੇ ਉਠਿ ਚਲਸਹਿ ਪਰਭਾਤਿ ॥ रात्रिकाल के अतिथि की तरह तुम सुबह-सवेरे उठकर गमन कर जाओगे।
ਕਿਆ ਤੂੰ ਰਤਾ ਗਿਰਸਤ ਸਿਉ ਸਭ ਫੁਲਾ ਕੀ ਬਾਗਾਤਿ ॥੨॥ हे प्राणी ! तुम अपने गृहस्थ के साथ क्यों मोहित हुए फिरते हो? क्योंकि सृष्टि के समस्त पदार्थ उद्यान के पुष्पों की भांति क्षणभंगुर हैं।॥ २॥
ਮੇਰੀ ਮੇਰੀ ਕਿਆ ਕਰਹਿ ਜਿਨਿ ਦੀਆ ਸੋ ਪ੍ਰਭੁ ਲੋੜਿ ॥ हे प्राणी ! तुम यह क्यों कहते फिरते हो कि ‘यह मेरा है, वो मेरा है।' उस ईश्वर को स्मरण कर, जिसने यह सब कुछ तुझे प्रदान किया है।
ਸਰਪਰ ਉਠੀ ਚਲਣਾ ਛਡਿ ਜਾਸੀ ਲਖ ਕਰੋੜਿ ॥੩॥ हे प्राणी ! तुम इस नश्वर संसार से अवश्य ही गमन कर जाओगे (जब मृत्युकाल की अवधि आएगी और लाखों, करोड़ों अमूल्य पदार्थ सब कुछ त्याग कर ही जाओगे)॥ ३॥
ਲਖ ਚਉਰਾਸੀਹ ਭ੍ਰਮਤਿਆ ਦੁਲਭ ਜਨਮੁ ਪਾਇਓਇ ॥ हे प्राणी ! चौरासी लाख योनियों में भटकने के पश्चात् तूने यह दुर्लभ मानव जन्म प्राप्त किया है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਸਮਾਲਿ ਤੂੰ ਸੋ ਦਿਨੁ ਨੇੜਾ ਆਇਓਇ ॥੪॥੨੨॥੯੨॥ हे नानक ! तू नाम का सिमरन किया कर क्योंकि तेरा इस संसार को छोड़ने का दिवस निकट आ गया है ॥४॥२२॥९२॥
ਸਿਰੀਰਾਗੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥ श्रीरागु महला ५ ॥
ਤਿਚਰੁ ਵਸਹਿ ਸੁਹੇਲੜੀ ਜਿਚਰੁ ਸਾਥੀ ਨਾਲਿ ॥ हे शरीर रूपी स्त्री ! तू तब तक ही इस दुनिया में सुखी है, जब तक तेरा साथी (आत्मा) तेरे साथ है।
ਜਾ ਸਾਥੀ ਉਠੀ ਚਲਿਆ ਤਾ ਧਨ ਖਾਕੂ ਰਾਲਿ ॥੧॥ जब आत्मा रूपी साथी निकल जाएगा, यह शरीर रूपी स्त्री मिट्टी में मिल जाएगी ॥१॥
ਮਨਿ ਬੈਰਾਗੁ ਭਇਆ ਦਰਸਨੁ ਦੇਖਣੈ ਕਾ ਚਾਉ ॥ हे प्रभु ! मेरा मन सांसारिक तृष्णाओं से विरक्त हो गया है और तेरे दर्शनों की तीव्र अभिलाषा है।
ਧੰਨੁ ਸੁ ਤੇਰਾ ਥਾਨੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ हे प्रभु ! आपका वह निवास स्थान धन्य है ॥१॥ रहाउ ॥
ਜਿਚਰੁ ਵਸਿਆ ਕੰਤੁ ਘਰਿ ਜੀਉ ਜੀਉ ਸਭਿ ਕਹਾਤਿ ॥ हे शरीर रूपी स्त्री ! जब तक तेरा मालिक (आत्मा) तेरे हृदय में रहता है, तब तक सभी लोग तुझे ‘जी-जी' कहते हैं अर्थात आदर-सत्कार करते हैं।
ਜਾ ਉਠੀ ਚਲਸੀ ਕੰਤੜਾ ਤਾ ਕੋਇ ਨ ਪੁਛੈ ਤੇਰੀ ਬਾਤ ॥੨॥ जब उस देहि से प्राण निकल जाते हैं तो देहि रूपी नारी को कोई भी नहीं पूछता। तदुपरांत पार्थिव शरीर को सभी हटाने के लिए कहेंगे॥२॥
ਪੇਈਅੜੈ ਸਹੁ ਸੇਵਿ ਤੂੰ ਸਾਹੁਰੜੈ ਸੁਖਿ ਵਸੁ ॥ बाबुल के घर (इस संसार) में अपने पति-परमेश्वर की सेवा करो और ससुराल (परलोक) सुख में निवास करो।
ਗੁਰ ਮਿਲਿ ਚਜੁ ਅਚਾਰੁ ਸਿਖੁ ਤੁਧੁ ਕਦੇ ਨ ਲਗੈ ਦੁਖੁ ॥੩॥ गुरु की शरण में आकर शुभ आचरण एवं रहन-सहन की शिक्षा ग्रहण कर। फिर तुझे कदाचित दु:खी नहीं होना पड़ेगा।॥३॥
ਸਭਨਾ ਸਾਹੁਰੈ ਵੰਞਣਾ ਸਭਿ ਮੁਕਲਾਵਣਹਾਰ ॥ समस्त जीव स्त्रियों ने अपने पति-परमेश्वर के घर (परलोक में) जाना है और सभी का विवाह उपरांत गौना (विदायगी) होना है। अर्थात् सभी प्राणियों ने इस संसार में आकर मृत्यु के उपरांत परलोक गमन करना है, इसलिए इस संसार में अपने पिया प्रभु की स्तुति अवश्य करनी चाहिए ताकि उसके घर (परलोक) में स्थान प्राप्त हो। ?"
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